छुट्टियों में जब मैं घर गया था। एक दिन यही सोच रहा था यार जिंदगी तो सही चल रही हैं। कुछ किताबें सामने थी हाथों में मोबाइल थामे मैं युही सोच रहा था। तब पापा पुछने लगे "और बेटा कैसे गए इम्तिहान? "
मैंने पुछ लिया पापा क्या इम्तिहान इतने जरुरी है? और पापा की तरफ देखा ।
पापा थोड़ी देर तो मुझे देखने लगे। मैंने तो सोच लिया था अब कम से कम 10-15 थप्पड़ तो पड़ ने वाले हैं। पर पापा ने तभी कहा ,नहीं ! मैंने चौक कर पापा की तरफ देखा क्या कहा? पापा सचमुच इम्तिहान देना जरूरी नहीं?
"हां ! जरुरी नहीं। "
मैं सोच ने लगा था ए कैसै हो सकता है ? मैंने तो ए सोचा भी नहीं था। तब पापा ने कहा,
जानते हो मैं जब छोटा था न मैं बहोत पढ़ना चाहता था । मगर हालात कुछ ऐसे थे के मुझे पढ़ाई छोड़नी पड़ी। मैंने पढ़ना छोड़ दिया मगर बस इम्तिहान की किताबों को पढ़ना छोड़ दिया था।
मैं अपनी पूरी जिंदगी सिखते आया हूं। मैंने सिखा हैं जब हम खाली पेट हो और दोस्त खाने को पूछे तो उसे कहेना "भाई ! मैं तो खाना खाकर आया था।, यार आज भूक नही है। "
जब अपने जेब मैं पैसे न हो तो हर सस्ती चीज को महंगा कैसे माना जाता है। कल मैथी 10रुपये किलो थी पर जेब मे बस 8रुपये थे तो मैथी महंगी थी पर आज मैथी 20रु किलो. है और जेब में 40रुपए है तो मैथी सस्ती है। मैं ने ये जाना है ये सिखा है।
हा ! इम्तिहान देना जरुरी नहीं। मगर जरुरी है पढना, सिखना, ख्वाब देखना, जिंदगी को खुलकर जीना बहोत जरुरी हैं । हा इम्तिहान देना जरुरी नहीं। हर रोज़ करोड़ों ख्वाब देखे जाते हैं व्यक्ति कोई भी ख्वाब जरुर देखता है, मगर उन्हें पूरा करने के लिए मेहनत हर कोई नहीं करता। और मैं ए दावे के साथ कह सकता हूँ के जो मेहनत करता है उसे सफलता अवश्य मिलती है।
मैंने तेरे लिए सोचा था। जो मुझे नहीं मिला मैं ओ सब अपने बेटे को दूंगा । मेरा बस यही ख्वाब था।
अब ये तेरा फर्ज है, के जो मैं तुझे नही दे सका ओ सब तु अपने बेटे को देगा। ए मत सोच तेरे पास क्या है, तुझे करना क्या हैं, तुझे बस ए ध्यान रखना है के "मुझे किसी ने कुछ दिया है जो मुझे सुद समेत लौटाना हैं। "और रही बात लोगों की तो मैं बस हरबार यही गाता आया हूँ ,
"होंगे राजे राजकुंवर ,
हम बिगड़े दिल शहजादे।
हम सिंघासन पर जा बैठे ,
जब-जब करे इरादे ।"
जिंदगी इतनी छोटी है के आंखें झपकने से खुल ने तक उम्र बीत जाती हैं। तुम ख्वाबों को जिंदा रखना सिखो 100 साल नही जीना मगर 100साल तक अपना नाम अमर कर दो ।
किताब के आखरी पन्ने पर भी गर तुम्हारा नाम आता है तो मैं खुश हूं क्योंकि किताबें कभी मरा नहीं करती । हा बेटा ! इम्तिहान देना जरुरी नहीं। मगर तुम्हारा सिखना जरुरी है।
मैंने पुछ लिया पापा क्या इम्तिहान इतने जरुरी है? और पापा की तरफ देखा ।
पापा थोड़ी देर तो मुझे देखने लगे। मैंने तो सोच लिया था अब कम से कम 10-15 थप्पड़ तो पड़ ने वाले हैं। पर पापा ने तभी कहा ,नहीं ! मैंने चौक कर पापा की तरफ देखा क्या कहा? पापा सचमुच इम्तिहान देना जरूरी नहीं?
"हां ! जरुरी नहीं। "
मैं सोच ने लगा था ए कैसै हो सकता है ? मैंने तो ए सोचा भी नहीं था। तब पापा ने कहा,
जानते हो मैं जब छोटा था न मैं बहोत पढ़ना चाहता था । मगर हालात कुछ ऐसे थे के मुझे पढ़ाई छोड़नी पड़ी। मैंने पढ़ना छोड़ दिया मगर बस इम्तिहान की किताबों को पढ़ना छोड़ दिया था।
मैं अपनी पूरी जिंदगी सिखते आया हूं। मैंने सिखा हैं जब हम खाली पेट हो और दोस्त खाने को पूछे तो उसे कहेना "भाई ! मैं तो खाना खाकर आया था।, यार आज भूक नही है। "
जब अपने जेब मैं पैसे न हो तो हर सस्ती चीज को महंगा कैसे माना जाता है। कल मैथी 10रुपये किलो थी पर जेब मे बस 8रुपये थे तो मैथी महंगी थी पर आज मैथी 20रु किलो. है और जेब में 40रुपए है तो मैथी सस्ती है। मैं ने ये जाना है ये सिखा है।
हा ! इम्तिहान देना जरुरी नहीं। मगर जरुरी है पढना, सिखना, ख्वाब देखना, जिंदगी को खुलकर जीना बहोत जरुरी हैं । हा इम्तिहान देना जरुरी नहीं। हर रोज़ करोड़ों ख्वाब देखे जाते हैं व्यक्ति कोई भी ख्वाब जरुर देखता है, मगर उन्हें पूरा करने के लिए मेहनत हर कोई नहीं करता। और मैं ए दावे के साथ कह सकता हूँ के जो मेहनत करता है उसे सफलता अवश्य मिलती है।
मैंने तेरे लिए सोचा था। जो मुझे नहीं मिला मैं ओ सब अपने बेटे को दूंगा । मेरा बस यही ख्वाब था।
अब ये तेरा फर्ज है, के जो मैं तुझे नही दे सका ओ सब तु अपने बेटे को देगा। ए मत सोच तेरे पास क्या है, तुझे करना क्या हैं, तुझे बस ए ध्यान रखना है के "मुझे किसी ने कुछ दिया है जो मुझे सुद समेत लौटाना हैं। "और रही बात लोगों की तो मैं बस हरबार यही गाता आया हूँ ,
"होंगे राजे राजकुंवर ,
हम बिगड़े दिल शहजादे।
हम सिंघासन पर जा बैठे ,
जब-जब करे इरादे ।"
जिंदगी इतनी छोटी है के आंखें झपकने से खुल ने तक उम्र बीत जाती हैं। तुम ख्वाबों को जिंदा रखना सिखो 100 साल नही जीना मगर 100साल तक अपना नाम अमर कर दो ।
किताब के आखरी पन्ने पर भी गर तुम्हारा नाम आता है तो मैं खुश हूं क्योंकि किताबें कभी मरा नहीं करती । हा बेटा ! इम्तिहान देना जरुरी नहीं। मगर तुम्हारा सिखना जरुरी है।
Good very good
ReplyDeleteDhanywad
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